हेलो दोस्तों तो आज के इस पोस्ट में हम कुछ ऐसा सीखने वाला है जो की 70% लोगो को नहीं पता होता है जो मार्केट में अभी नए है। यह उनके लिए है जो अभी-अभी ऑप्शन ट्रेडिंग करने लगे है तो मैं बात कर रहा हूँ Option Greeks (ऑप्शन ग्रीक्स) की तो Option Greeks क्या होते हैं? ये समझने से पहले मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ ताकि आपके लिए समझना थोड़ा आसान हो जाए।
तो मान लीजिये की अभी बैंक निफ्टी 45,000 पर है और आप बैंक निफ्टी में ऑप्शन की ट्रेडिंग कर रहे हैं और आपको लगता है की यहाँ से बैंक निफ़्टी ऊपर जाएगा तो आपने 45,000 का ही कॉल ऑप्शन खरीद लिया। जो ऑप्शन आपने खरीदा हैं उसका प्राइस ₹100 है दोस्तों जो ऑप्शन होते है वो डेरिवेटिव्स होते हैं जिनका जो प्राइस है वो एक दूसरी एसेट पे डिपेंड करती है तो इस केस में वो ऐसेट बैंक निफ्टी है तो इसका मतलब जैसे जैसे बैंक निफ्टी बढ़ेगा वैसे वैसे आपने ये जो ₹100 में बैंक निफ्टी का जो ये 45000 का कॉल खरीदा है वो भी बढ़ेगा।
मान लेते है की आपने जो एनालिसिस किया है वो सही निकलता है और बैंक निफ्टी 45000 से बढ़कर 45,100 पर चला जाता है तो इस केस में आपने जो ₹100 वाला ऑप्शन खरीदा था उसका प्राइस भी बढ़कर ₹200 हो जाना चाहिए था लेकिन ज्यादातर केस में आप देखेंगे की प्राइस ₹100 बढ़ने की जगह सिर्फ ₹50 ही बढ़ता है और ऐसा क्यों होगा यह समझने से पहले एक और उदाहरण से समझते है जो हमने अभी उदाहरण दिया है उसी की तरह मान लो की आपने 45000 के बैंक निफ्टी का कॉल ऑप्शन ख़रीदा है ₹100 के प्राइस में क्योंकि आपको लगता है कि बैंक निफ्टी यहाँ से ऊपर जाएगा आपका एनालिसिस थोड़ा बहुत सही भी निकलता है और आपके खरीदने के 5 मिनट के बाद ही जो बैंक निफ्टी है उसका प्राइस बढ़कर ₹45,050 हो जाता है यानि बैंक निफ़्टी बढ़ता है तो इस केस में आपको थोड़ा बहुत प्रॉफिट दिखने लगता है लेकिन उसके थोड़ी देर बाद जो बैंक निफ्टी है वो वापस 45,000 तक आ जाता है तो इस केस में जो आपके ऑप्शन की वैल्यू है वो ₹100 ही होनी चाहिए थी यानी इस केस में आपको लॉस नहीं होना चाहिए था अब उसकी वैल्यू घट गयी होंगी और आपको लॉस नजर आ रहा है होगा तो इस केस में जो बैंक निफ़्टी है वो वहीं का वहीं है लेकिन इसके बावजूद भी आपको अपने ट्रेड में लॉस नजर आ रहा है तो यहाँ पर अगर आप नए हैं तो आपके दिमाग में प्रशन आ रहा होगा की ऐसा क्यों होता है और इसका जवाब है Option Greeks
अब ये जो Option Greeks है इनका नाम सुनकर शायद आपको डर लग रहा हो पर आपको ये भी लग रहा होगा की बहुत ज्यादा मुश्किल होगा लेकिन दोस्तों इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद आपको इसके बारे में अच्छे से समझ आ जायेगा।
Option Greeks के प्रकार
दोस्तों पहले जान लेते है Option Greeks के प्रकार क्योकि इन्ही पर सारा कॉन्सेप्ट टिका हुआ है अगर अपने इनको समझ लिए ऑप्शन ट्रेडिंग भी आसानी से समझ में आ जाएगी। दोस्तों शेयर मार्केट में जितने भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स हमें देखने को मिलते हैं वो मुख्यता पांच Option Greeks से मिलकर बने होते है और इन्हीं के बेसिस पर वो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट रिटर्न्स देते हैं और वो Option Greeks है
- Delta (डेल्टा),
- Gama (गामा),
- Theta (थीटा),
- Vega (वेगा)
- Roh (रो)
1. Delta (डेल्टा)
तो दोस्तों सबसे पहले हम डेल्टा को समझते है क्योकि इसका रोल ऑप्शन ट्रेडिंग में बहुत महत्वपूर्ण है। दोस्तों जो डेल्टा होता है वो ऑप्शन के मूमेंट को तय करता है.
आईये इसको एक उदाहरण से समझते है तो मान लीजिए की जो बैंक निफ्टी हैं उसका प्राइस अभी 50,000 चल रहा है और मान लो की बैंक निफ़्टी यहाँ से ऊपर जायेगा तो आप 50,000 का ही कॉल ऑप्शन खरीद लेते है और इसका प्राइस 300 के पास चल रहा है और उसका जो डेल्टा है वो 0.5 का है.
तो दोस्तों जो डेल्टा की वैल्यू होती है वो 0 से लेकर 1 के बीच में घूमती है तो हम ये मान रहे है की ये जो बैंक निफ़्टी का 50,000 का कॉल ऑप्शन है इसका जो डेल्टा है वो 0.5 का है। इस केस में अगर बैंक निफ्टी 50,000 से बढ़कर 50,100 हो जाता है तो क्योकि जो उसका डेल्टा 0.5 है तो इस केस में आपका जो कॉल ऑप्शन है उसमे 100 x 0.5 यानि 50 की बढ़त देखने को मिलेगी मतलब बैंक निफ़्टी 100 पॉइंट बड़ा है लेकिन उसका जो कॉल ऑप्शन वो सिर्फ 50 पॉइंट बड़ा है क्योकि यहाँ पर जो उसका डेल्टा 0.5 है।
अगर डेल्टा सिर्फ 0.40 का होता तो बैंक निफ़्टी में सिर्फ 40 पॉइंट्स का मूव आता। और अगर डेल्टा 0.6 का होता तो 60 पॉइंट्स का मूव आता।
यहाँ पर मैं आपको क्लियर कर दू की क्योकि मै अभी यहाँ पर डेल्टा समझा रहा हूँ तो हम ये मान कर चल रहे है की जो बाकि option greeks है वो कांस्टेंट है और वास्तव में बाकि option greeks के चेंज होने से भी ऑप्शन के प्राइस में चेंज होता है।
शेयर मार्केट में किन-किन चीजों के लिए हमें Fees and Charges देना होता है।
तो दोस्तों अब आपको समझ आ गया है कि डेल्टा किस तरीके से ऑप्शन के प्राइस को इफ़ेक्ट करता है तो अभी हम कॉल ऑप्शन की बात कर रहे थे जिसमें जो डेल्टा है वो 0 से 1 के बीच में मूव करता है तो अब अगर पुट ऑप्शन की बात करें तो वहाँ पर डेल्टा 0 से 1 नहीं बल्कि 0 से -1 के बीच में मूव करता है लेकिन यहाँ पर भी डेल्टा बिलकुल सेम ही करता है क्योंकि पुट में हम पैसे तब कमाते हैं जब मार्किट गिरता है। इसलिए यहाँ पर जो डेल्टा की वैल्यू है वो 0 से -1 के बीच में मूव करती है
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तो इसका भी एक उदहारण लेते है अभी बैंक निफ़्टी 50,000 पर चल रहा है और आपको लगता है कि बैंक निफ्टी गिरेगा तो आप बैंक निफ्टी का 50,000 का पुट ऑप्शन खरीद लेते हैं जिसका प्राइस ₹400 हैं और जिसका जो थीटा है वो -0.54 का है तो इस केस में अगर मान लो बैंक निफ्टी 200 पॉइंट गिरकर 49,800 पर आ जाता है तो ऐसे में जो आपके ऑप्शन की वैल्यू है वो 200 x 0.54 यानी ₹108 बढ़ेगी तो जो पुट ऑप्शन जब आपने बैंक निफ्टी ₹50,000 चल रहा था तब आपने ₹400 में खरीदा था अब उसका जो प्राइस है जब बैंक निफ्टी 49,800 आ चुका है वो बढ़कर ₹580 हो जाएगी और यही सेम चीज़ लॉस के टाइम पर भी होगी मतलब आपने माना था कि बैंक निफ्टी गिरेगा लेकिन इसका उल्टा अगर बैंक निफ़्टी बढ़ जाता है तो वहां पर भी जितना बैंक निफ़्टी बढ़ा है उसको आप 0.54 से गुणा करेंगे तो आपको समझ आ जाएगा की आपका जो ऑप्शन है उसकी वैल्यू में कितना चेंज आएगा।
तो अब मुझे लगता है की आपको डेल्टा अच्छे से क्लियर हो गया होगा।
2. Gama (गामा)
दोस्तों गामा हमें डेल्टा में क्या चेंज आने वाला है है उसके बारे में बताता है क्योकि आपको पता है की डेल्टा एक डाइनैमिक ग्रीक है यानी वो चेंज होता रहता है और हर स्ट्राइक प्राइस पर डेल्टा अलग होता है तो अगर आप निफ़्टी का 19,000 का कॉल देखेंगे तो वहाँ पर डेल्टा अलग होगा 19,100 का कॉल देखेंगे तो डेल्टा अगल होगा तो कौन पता लगाता है के किस प्राइस पर कितना डेल्टा चेंज होगा यही हमें गामा बताता है। इसको भी हम एक उदाहरण से समझते है मान लो के निफ़्टी अभी 19000 पर चल रहा है और हमने 19100 का कॉल ऑप्शन खरीद लिया जहाँ पर जो डेल्टा है वो 0.30 है और जो गामा है वो 0.05 है तो जैसे ही निफ्टी 19,000 से बढ़कर 19,100 हो जाएगा तो वहाँ पर डेल्टा भी चेंज होकर 0.30 + 0.05 = 0.35 हो जायेगा तो यहाँ गामा ये बता रहा है की डेल्टा किस हिसाब से चेंज होगा।
3. Theta (थीटा)
तो दोस्तों थीटा की बात करे तो ये एक ऐसा option greeks है जो की टाइम डीके या फिर थीटा डीके को परिभाषित करता है। आप इसे इसके नाम से याद रख सकते है। थीटा वो रेट है जिसके बेसिस पर ऑप्शन पर टाइम decay लगेगा।
दोस्तों जैसा के हम सबको पता है की टाइम है उसकी बहुत ज्यादा वैल्यू है तो जब भी आप कोई ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हो तो वो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट आप जितने भी टाइम के लिए खरीदोगे आपको उस टाइम की वैल्यू बेचने वाले को देनी पड़ती है जिसने उस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में बेचा है। तो यही per day की टाइम वैल्यू का जो रेट है उसको थीटा बोलते है।
दोस्तों आपको पता होगा की ये जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट होते हैं ये वीकली और मंथली होती है तो जैसे एक ऑप्शन की एक्सपाइरी पास आती है उसके जो थीटा की वैल्यू हैं वो घटती जाती है और जब ऑप्शन एक्सपाइर हो जाते हैं तब उसके थीटा की जो वैल्यू है वो ज़ीरो हो जाती।
मैं जानता हूँ कि आपको बहुत ज्यादा समझ नहीं आया होगा तो यह ग्रीक ऑप्शन कॉन्टैक्ट पर काम कर रहा है चलिए इसको एक उदाहरण से समझते है तो दोबारा से वही उदाहरण ले लेते है। मान लो की जो बैंक निफ़्टी है वो ₹50,000 चल रहा है और आपको लगता है की यहाँ से बैंक निफ्टी बढ़ सकता है तो इसलिए आप 50,000 का ही बैंक निफ्टी का कॉल ऑप्शन खरीद लेते हैं जिसका जो प्राइस है वो ₹200 है और उसका जो थीटा है वो 20 का है।
अब इस केस में आप मान के चल रहे है की आपने जो 50,000 का कॉल ऑप्शन ख़रीदा है उसको आप आज नहीं बेचते हो उसको आप अगले दिन बेचते हो तो आप वहां पर देखते हो की बैंक निफ़्टी अभी भी 50,000 पर ही है यानि कल जब आपने इसको ख़रीदा था तब भी बैंक निफ्टी ₹50,000 था और आज जब आप इस को सेल करने जा रहे हैं तब भी 50,000 है.
लेकिन इस केस में आप देखेंगे की जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट है उसकी वैल्यू अगले दिन ₹20 घटकर ₹180 हो चुकी होगी क्योंकि मैंने आपको बताया है की थीटा बताता है की 1 दिन में जो ऑप्शन है की वैल्यू में एक दिन में कितना चेंज आएगा क्योकि थीटा ₹20 था तो एक दिन गुजरने के बाद ऑप्शन की वैल्यू है वो ₹20 घट जाएगी.
अगर मान लीजिये थीटा ₹30 होता तो इस केस में जो ऑप्शन की वैल्यू है वो 200 से घटकर ₹170 हो जाती क्योंकि यहाँ पर जो थीटा था वो ₹30 था यहाँ पर भी समझने के लिए यह मानकर चल रहा है जो बाकी ऑप्शन है वो कॉन्स्टेंट है जबकि ऐसा आमतौर पर नहीं होता है वो भी चेंज होते रहते हैं
और इसके साथ ही मैं यहाँ पर आपको ये भी क्लियर कर दू की ऐसा नहीं है की थीटा अगर 20 है तो फिर वो 20 ही रहेगा हो सकता है हो सकता है की वो अगले दिन बढ़कर 30 या फिर 40 हो जाये। तो ऐसे में अगले दिन जो ऑप्शन के प्राइस में चेंज आएगा वो 40 रूपए का होगा। और प्राय: जैसे-जैसे ऑप्शन की एक्सपाइरी पास आती है वैसे-वैसे उसका जो थीटा है वो बढ़ता जाता है और जिस दिन ऑप्शन की एक्सपाइरी होती है उस दिन थीटा बहुत ज्यादा होता है जिस वजह से उस दिन थीटा decay ज्यादा होता है और ऑप्शन के प्राइस जो टाइम घटने की वजह से चेंज आता है वो बहुत ज्यादा होता है.
यहाँ पर मैं आपका एक और कन्फ्यूजन दूर कर देता हूँ वो ये है की मैंने क्योंकि यहाँ पर मैंने आपको कहा हैं की जो थीटा है वो आपको बताता है की एक दिन में टाइम घटने की वजह से जो ऑप्शन है उसकी प्राइस में कितना चेंज आता है तो इसका मतलब ये नहीं है की थीटा इंट्राडे में काम नहीं करता है आप जैसे ही ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को buy कर लेते हो वैसे ही थीटा आपके विपरीत काम करना शुरू कर देता है और वैसे ही जो ऑप्शन की वैल्यू है वो टाइम बढ़ने के साथ साथ घटती चली जाती है.
तो अगर आप एक ऑप्शन buyer है यानी आपने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को buy किया है तो इस केस में आपको थीटा पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है और जो ऑप्शन sellers है उनके लिए थीटा एक फायदे की भूमिका निभाता है क्योकि ऑप्शन seller ने कॉन्ट्रैक्ट सेल किया है तो ऐसे में जितने टाइम पीरियड के लिए आप उस कॉन्ट्रैक्ट को अपने पास रखेंगे जो ऑप्शन seller है उसको फायदा होता रहेगा। दोस्तों अब आपको थीटा भी समझ में आ गया होगा।
4. Vega (वेगा)
वेगा को समझने के लिए मेरा आपसे एक सवाल है और वो यह है की मान लो आपके पास एक फ्लैट है जिसकी कीमत 50 लाख रूपए है लेकिन आपके खरीदने के बाद न्यूज़ आ जाती है की जहा पर आपका फ्लैट है वहां पास में एक मॉल बनने वाला है तो ऐसे में आपको पता है की अब जो फ्लैट की कीमत बढ़कर ₹80,00,000 हो गई है तो अब अगर मैं आपको कहूँ की आपके पास जो 50,00,000 वाला फ्लैट हैं क्या आप मुझे वो 50,00,000 में ही बेचोगे।
सीधी सी बात है आप नहीं करोगे क्योकि आपको पता है अब जो उसकी कीमत है वो ₹80,00,000 हो चुकी है तो इसी प्रकार वेगा भी इसी तरीके से काम करता है जैसे ही किसी प्रॉडक्ट की इंप्लाइड वॉलेटिलिटी बढ़ती या घटती होगी वैसे ही वे किसी एक पर्टिकुलर कॉन्ट्रैक्ट यानी ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट की यहाँ पर मैं बात कर रहा हूँ उसकी प्राइस पर प्रभाव डालेगा।
अब ये इंप्लाइड वॉलेटिलिटी क्या होती है इंप्लाइड वॉलेटिलिटी आमतौर एक सपत्ति है जो कि इस केस में ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट है उसकी वॉलेटिलिटी को शो करता है इंप्लाइड वॉलेटिलिटी के बेसिस पर।
वेगा ऑप्शंस में कैसे काम करता है चलिए वो भी एक उदाहरण से समझ लेते हैं
तो मान लीजिये आपने निफ्टी 50 के 20000 का पुट ऑप्शन को ख़रीदा है 100 रूपए के प्राइस में और अभी उसके कॉन्ट्रैक्ट की जो इंप्लाइड वॉलेटिलिटी वो 20 है और उसका वेगा 15 है जैसे ही किसी कॉन्ट्रैक्ट की जो इंप्लाइड वॉलेटिलिटी बढ़ती या घटती है वैसे ही वेगा उसकी प्राइस पर प्रभाव डालता है।
इंप्लाइड वॉलेटिलिटी क्या होती है
तो इंप्लाइड वॉलेटिलिटी का मतलब होता है उस एक संपत्ति वॉलेटिलिटी से है जिसके ऊपर वो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट निर्भर है जैसे अगर आप बैंक निफ्टी का ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं तो इस केस में अंडरलाइन संपत्ति बैंक निफ्टी है तो इंप्लाइड वॉलेटिलिटी ये बताता है की जो बैंक निफ्टी का प्राइस है वो कितनी तेजी से बढ़ या घट सकती है तो जितनी ज्यादा एक संपत्ति की वोलिटिलिटी है वो बढ़ेगी और घटेगी और उतना ज्यादा ही वेगा उसके ऑप्शन के प्राइस पर प्रभाव डालेगा। और ये प्रभाव कैसे करता है इसको भी हम एक उदाहरण से समझते है।
तो मान लेते है की आपने निफ्टी 50 के 20000 का पुट ऑप्शन ख़रीदा जिसका प्राइस ₹100 है इसकी इंप्लाइड वॉलेटिलिटी 20 है और इसका जो वेगा है वो 15 का है तो अब अगर मान लो उस पर्टिकुलर Asset की इंप्लाइड वॉलेटिलिटी है वो 20 से बढ़कर 22 हो जाती है तो इस केस में जो इंप्लाइड वॉलेटिलिटी है वो 2 पॉइंट्स से बढ़ी है और वेगा 15 का है
तो ऐसे में उस ऑप्शन का प्राइस है वो ₹30 बढ़ जाएगी और इसके उलटे मान लो अगर इंप्लाइड वॉलेटिलिटी है वो 20 से घटकर 17 हो जाती है तो इस केस में क्योंकि वेगा 15 है तो 3 x 15 यानि ₹45 का डिक्रीस है वो आपको उस पर्टिकुलर ऑप्शन के प्राइस पर देखने को मिलेगा।
तो इस तरीके से वेगा उस पर्टिकुलर asset की इंप्लाइड वॉलेटिलिटी के साथ मिलकर एक पर्टिकुलर ऑप्शन के प्राइस को बढ़ाता और घटाता है तो इसलिए किसी भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को खरीदने से पहले आपको उसका वेगा और उसकी इंप्लाइड वॉलेटिलिटी जरूर चेक करनी चाहिए। पहले अगर गामा की बात करें तो आपको याद होगा की हमने आपको डेल्टा के बारे में बताया था जोकि अंडरलाइंग एसेट जैसे की बैंक निफ़्टी या निफ़्टी में चेंज आने से उस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू में कितना चेंज आएगा ये हमें बताता है।
5. Roh (रो)
तो दोस्तों अब हम यहाँ पर रोह को समझते है। दोस्तों जो Roh होता है मार्केट में उसका इतना ज्यादा use नहीं होता है। जो हमें आमतौर पर ऑप्शन प्राइस और Interest rates के रिलेशन को बताता है
सरल भाषा से समझो कि जो कॉल ऑप्शन है उसमें जो Interest rates होते हैं वो पॉज़िटिवली correlated होते हैं यानी अगर Interest rates बढ़ेंगे तो Call Option की प्राइस भी बढ़ेगी तो इसलिए आपको हमेशा कॉल ऑप्शन पे जो Roh है वो पॉजिटिव देखने को मिलेगा और वहीं जो put option है उसमे जो Interest rates होते है वो नेगेटिवली कोरिलेटेड होते है इसलिए जो पुट ऑप्शन हैं उसमें आपको रोज़ नेगेटिव देखने को मिलेगा।
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Roh को बस आप इतना समझ लो की अगर मान लो आपने कोई कॉल ऑप्शन खरीद रखा है और गवर्नमेंट इंटरेस्ट रेट बढ़ा देती है तो कॉल ऑप्शन का प्राइस बढ़ जायेगा
और इसके उल्टे अगर मान लो आपने कॉल ऑप्शन खरीद रखा है और गवर्नमेंट इंट्रेस्ट रेट घटा देती है तो यहाँ पर आपका जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट है उसकी वैल्यू घट जाएगी और अगर आपने पुट ऑप्शन खरीद रखा है तो क्योंकी यहाँ पर इंट्रेस्ट रेट्स negatively कोरेलेटेड होता है और वहाँ पर इंट्रेस्ट रेट बढ़ जाते हैं तो आपके जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू है वो घट जाएगी और अगर interest rates घट जाते है
तो यहाँ पर जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू बढ़ जाएगी तो रोह हमें बस इतना ही बताता है और मैंने आपको बताया की रोह का इतना ज्यादा यूज़ आपको देखने को नहीं मिलेगा और हमने यहाँ पर सभी ऑप्शन ग्रीक्स को समझ लिया है।
अब आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा मैंने ये ऑप्शन ग्रीक्स सीख तो लिए है लेकिन मैं इनको चेक कैसे करू।
तो दोस्तों इसके लिए एक वेबसाइट है Sensibull जोकि मैं भी इसको use करता हूँ। इसमें आप देख सकते है की जो निफ़्टी 50 का 22150 का जो स्ट्राइक प्राइस है उसका गामा है वो 0.0014 है, वेगा 11 है, थीटा -9, और डेल्टा 0.51 है।
निष्कर्ष
दोस्तों उम्मीद है मेरा ये पोस्ट आपका पसंद आया होगा और अपने इसको अच्छे से सीखा होगा। दोस्तों इसका use हम एक अच्छी ऑप्शन ट्रेड के लिए कर सकते है।